MSC Notes
Unit -1
ऐरोमैटिक इलेक्ट्रॉन स्नेही प्रतिस्थापन एवं ऐरोमैटिक नाभिक स्नेही प्रतिस्थापन (AROMATIC NUCLEOPHILIC & ELECTROPHILIC SUBSTITUION)
इलेक्ट्रान स्नेही प्रतिस्थापन (Electrophilic Substituion)
इलेक्ट्रोफिलक प्रतिस्थापन ऐरोमैटिक नाभिक पर होता है, क्योंकि ऐरोमैटिक नाभिक पर इलेक्ट्रॉन चक्र होता है, इसलिये इस पर न्यूक्लिओफाइल अग्रसित नहीं हो सकता (वह इलेक्ट्र के द्वारा विकर्षित होगा), परन्तु इलेक्ट्रोफाइल इस चक्र द्वारा आकर्षित होगा। इसलिये ऐरोमैटि नाभिक पर प्रतिस्थापन अभिक्रिया इलेक्ट्रोफिलिक क्रियाविधि द्वारा होती है।
1.1 अरेनियम आयन क्रियाविधि :
जब इलेक्ट्रोफाइल (X) एरोमैटिक नाभिक की ओσσर अग्रसित होता है, तो सर्वप्रथम इस पारस्परिक क्रिया (interaction) नाभिक के इलेक्ट्रॉन चक्र के साथ होती है और संकर ( complex) बनता है। यह संकर उत्क्रमणीय होता है, क्योंकि इसमें कोई बंध नहीं बनता है, केवल +ve ve आकर्षण के द्वारा बनता है। तत्पश्चात् इलेक्ट्रोफाइल किसी एक कार्बन परम पर अग्रसित होता है और उसके द्वारा सहसंयोजी बंध बनाकर σσ संकर (σ-complex) बनाता इसे σ संकर अरेनियम आयन (arenium ion) कहते है, इस में घनावेश अस्थानीकृत (delocalize होता है। यह संकर न्यूक्लिओफाइल को ग्रहण करके योगात्मक उत्पाद बना सकता है, या को उन्मुक्त करके ऐरोमैटिसिटी को दोबारा प्राप्त कर सकता है। चूंकि योगात्मक उत्पाद बनने ऐरोमैटिसिटी समाप्त हो जाती है, और ऐरोमैटिसिटी, अणु को अधिक स्थायित्व प्रदान करती । - इसलिये ऐरोमैटिक यौगिकों में योगात्मक अभिक्रिया नहीं होती है। दूसरी ओर प्रतिस्थापन अभिक्रि से ऐरोमैटिसिटी बरकरार रहती है, इसलिये इन यौगिकों में प्रतिस्थापन अभिक्रिया ही होती है।
104 स्नातकोत्तर समूह सिद्धान्त, स्पेक्ट्रामिकी प्रथम, द्वितीय एवं विवर्तन विधियाँ
जब 110 की आवृत्ति में इस प्रकार का बदलाव किया जाता है कि वह परिवृद्धि आवृत्ति से होकर गुजरती तो मे अधिक कम्पन होता है तथा उस परिस्थिति में नाभिक एवं क्षेत्र में ऊर्जा का आदान-प्रदान है क्योंकि इस प्रकार का व्यवहार एक अनुनाद की प्रक्रिया दर्शाता है। अतः इसे नाभिकीय चुम्बकीय अनुनाद कहना सर्वथा उपयुक्त है।
किस करती हुई नाभिको को परिशुद्धि आवृत्ति वह आवृत्ति है जिस पर विद्युत चुम्बकीय
विकिरण की आवृत्ति नाभिक के एक प्रचक्रण स्थिति से दूसरे प्रचक्रमण स्थिति के विनिमय के लिये पर्याप्त है। उस समय जब घूर्णीय चुम्बकीय क्षेत्र की आवृत्ति नाभिक की आवृत्ति के समान हो जाती है। तब अनुनाद की स्थिति होती है तिथा उसी स्थिति में ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन होता है। जब भी किसी
यौगिक पर स्थिर चुम्बकीय क्षेत्र लगाया जाता है। घूर्णित चुम्बकोय क्षेत्र की आवृत्ति को बढ़ाता जाता है तब
का अवशोषण होता है
H - (JH) = 2
2pH = hu ऊर्जा
क्षेत्र
नाभिकीय प्रचक्रण (Nuclear Spin)
-
किसी नाभिक के प्रचक्रण को सामान्यतः / संकेत से प्रदर्शित करते हैं जिसे प्रचक्रण क्वाण्टम संख्या कहा जाता है। क्वाण्टम यांत्रिकी के अनुसार किसी नाभिक का कोणीय संवेग निम्न समीकरण से प्रदर्शित होता
कोणीय संवेग /= J7(1+1)(h/2x) 111+7) इकाईयाँ
हम प्रत्येक नाभिक के लिए कोई एक मान 0.
3
22.
• लेते हैं। इस प्रकार उपरोक्त समीकरण से
हम किसी इलेक्ट्रॉन के लिए प्रचक्रण क्वाण्टम संख्या एवं कोणीय संवेग को परिभाषित कर सकते हैं। इस
पकार / प्रचक्रण क्वाण्टम संख्या संकेत पर किसी इलेक्ट्रॉन के लिए इसका मान
होगा।
पूर्व कलाओं में पढ़ चुके हैं कि इलेक्ट्रॉन केवल नाभिक के चारों और ही परिभ्रमण नहीं करता है। अपितु अपने अक्ष पर भी भ्रमण करता है। इस प्रकार यह नाभिकीय प्रचक्रण दायी एवं बाई ओर (घड़ी की दिशा
एवं विपरीत दशा में) भ्रमण कर दो मान देता है + एवं . -
यही नाभिकीय प्रचक्रण या प्रचक्रण क्वाण्टम संख्या है। नाभिकीय अनुनाद (Nuclear resonance) इसी अध्याय में परिचय के अन्तर्गत इसका वर्णन किया जा चुका है। उसे देखें कुछ सामान्य निम्नानुसार समझा जा सकता है।
में परमाणु या प्रोटॉन एक छोटे प्रचक्रणी दण्ड चुम्बक की भाँति कार्य करता है जो कि बाह्य चुम्बकीय ३५ से समानान्तर या प्रांत समानान्तर संरेखण प्रदर्शित करता है। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार होती है जैसे के एक चुम्बकीय दिक्सूचक की सुई पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के साथ संरेखण प्रदर्शित करती है। क्वाण्टन की वजह से प्रोटॉन समानान्तर (निम्न ऊर्जा स्तर) या प्रति समानान्तर संरेखण (उच्च ऊर्जा स्तर) करता है। प्रचक्रण चुम्बक के रूप में जो ऊर्जा स्तर प्रोटॉन द्वारा प्रदर्शित होते हैं। निम्नानुसार दर्शाए सकते है