रासायनिक संयोग के नियम[Laws of Chemical Combination]

 

 रासायनिक संयोग के नियम  [Laws of Chemical Combination]

   

अनेक अभिक्रियाओं के परिणाम का परिमाणात्मक निर्धारण स्पष्ट करता है कि सभी रासायनिक अभिक्रियाएँ  विशेष नियम पालन करती हैं। ये नियम रासायनिक संयोग के नियम कहलाते हैं। ये नियम निम्नलिखित हैं-
(1) द्रव्य के संरक्षण का नियम (Law of conservation of mass) 

 (2) स्थिर अनुपात का नियम (Law of constant proportion)

 (3) गुणित अनुपात का नियम (Law of multiple proportion)

 (4) गे-लूसैक का नियम (Gay-Lussac's Law)

  (5) आवोगाद्रो का नियम (Avogadro's Law)।

(1) द्रव्य के संरक्षण का नियम अथवा द्रव्य की अविनाशिता का नियम (Law of Conservation of Mass)                                                                                    

इस नियम को सर्वप्रथम, रूसी वैज्ञानिक लोमोनोसोव (Lomonosoff) ने सन् 1756 में प्रतिपादित किया था जिसकी पुष्टि बाद में लेवाजिए, लैण्डोल्ट आदि वैज्ञानिकों ने की। इस नियम के अनुसार, किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों की मात्राओं का योग, रासायनिक क्रिया से बने पदार्थों की मात्रा के योग के बराबर होता है अर्थात् रासायनिक क्रिया में द्रव्य को न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही उत्पन्न किया जा सकता है।" ।

इस नियम की पुष्टि में निम्नलिखित प्रयोगों का उल्लेख किया जा सकता है- 

 प्रयोग 1.एक फ्लास्क में कुछ रेत भरकर उसके ऊपर फॉस्फोरस का टुकड़ा रखते हैं। फ्लास्क के मुँह को कॉर्क से कसकर बन्द करके फ्लास्क को तोलते हैं। फिर फ्लास्क को गरम करते हैं। फॉस्फोरस जलने लगता है और फ्लास्क फॉस्फोरस पेण्टा-ऑक्साइड के धुएँ से भर जाता है। फ्लास्क को ठण्डा करके पुनः तौलते हैं। यह देखते हैं कि फ्लास्क को गरम करने से पूर्व और बाद में उसके भार में कोई अन्तर नहीं आता है) 

(2) स्थिर अनुपात या निश्चित अनुपात का नियम (Law of Constant or Definite Proportion) |                                                                                                      

जोसफ लुई प्राउस्ट (1799) ने यह देखा कि प्रत्येक यौगिक का संघटन सदैव निश्चित रहता है, चाहे उसे किसी भी स्रोत  से प्राप्त किया गया हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्थिर अनुपात का नियम प्रतिपादित किया, जो इस प्रकार है- "प्रत्येक रासायनिक यौगिक में उसके अवयवी तत्व भारानुसार सदैव एक निश्चित अनुपात में पाये जाते हैं, चाहे वह यौगिक किसी भी विधि से प्राप्त किया गया हो 


उदाहरण--जल निम्नलिखित स्रोतों से प्राप्त हो सकता है-

(1) नदी, कुआँ, समुद्र, वर्षा आदि प्राकृतिक स्रोत से,

(2) प्रयोगशाला में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का संयोग करके, अथवा

(3) अन्य रासायनिक विधि से।

प्रत्येक स्रोत से प्राप्त जल के विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें भार की दृष्टि से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन सदैव 1 : 8 के अनुपात में संयुक्त रहते हैं। ;

इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड को भी कई विधियों से प्राप्त किया जा सकता है; जैसे-

(स) कार्बन को वायु में जलाकर,

(2) सोडियम कार्बोनेट पर तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की क्रिया से,

(3) कैल्सियम कार्बोनेट को गरम करके आदि ।

प्रत्येक विधि से प्राप्त कार्बन डाइऑक्साइड का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें कार्बन और ऑक्सीजन भार की दृष्टि से सदैव 12:32 के अनुपात में संयुक्त रहते हैं।

(3) गुणित अनुपात या सरल अनुपात का नियम (Law of Multiple or Simple Proportion)


इस नियम को 1803 में जॉन डाल्टन ने प्रतिपादित किया था। इस नियम के अनुसार, "जब दो तत्व आपस में संयोग करके दो या दो से अधिक यौगिक बनाते हैं, तब एक तत्व की भिन्न-भिन्न मात्राएँ जो दूसरे तत्व के निश्चित द्रव्यमान से संयो करती हैं, परस्पर एक सरल अर्थात् पूर्णांक अनुपात रखती हैं

 उदाहरण के लिए (i) कार्बन ऑक्सीजन से दो प्रकार से सं करता है।

$$C\frac{1}{2}O_{2}→CO_{2}$$

उपर्युक्त क्रियाओं में ऑक्सीजन के क्रमशः 16 ग्राम तथा 32 गाम कार्बन की निश्चित मात्रा 12 ग्राम से संयुक्त हुए ऑक्सीजन के कार्बन की निश्चित मात्रा से संयुक्त हुए भारों में 16:32 या 1 : 2 का सरल अनुपात है । 

 (4) गे-लूसैक का गैसीय संयोजन का नियम (Gay- Lussac's Law of Gaseous Combination)  यह नियम सन् 1808 में गे-लूसैक ने प्रतिपादित किया था। इस नियम के अनुसार, जब गैसें आपस में संयोग करती तो उनके आयतनों में सरल अनुपात होता है और यदि उनके संयोग से बना हुआ पदार्थ भी गैस हो तो उसका 

आयतन भी     क्रियाकारी  गैसों के आयतन के सरल अनुपात में होगा जबकि सभी आयतन एक ही  ताप वा दाब पर   नापे जाएं







(5) आवोगाद्रो का नियम (Avogadro's Law)

सन 1811 में आवोगाद्रो ने यह नियम प्रतिपादित कियाजिसके अनुसार, 'समान ताप व दाब पर गैसों के समान
आयतनों मेंअणुओं की संख्या बराबर होनी चाहिए।
उदाहरण के लिए,
समानताप व समान दाब पर दो-दो लीटर के पात्रों में उपस्थितH2,He,CO2,SO2 गैसों के अणुओं की संख्या समान होगी। वास्तव मेंआवोगाद्रो ने ही अणु की संकल्पना प्रस्तुत की।

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